UNDERSTANDING NAKSHATRAS by their NAMES
- Dinesh Yadav
- Jan 29
- 3 min read
29.1.2025
नक्षत्रो को समझना है तो उनके नाम को सबसे पहले समझना होगा , अश्विनी नक्षत्र नाम से ही समझ आता है अश्विनी नक्षत्र वाले लोगों में क्या गुण होंगे , अश्विनी भाइयो के पास आयुर्वेद का ज्ञान था उनका मुख घोड़े के समान था अर्थात अश्विनी वाले उपचार अब ये आवश्यक नहीं दवा संभंधित हो जीवन की किसी भी समस्या में आपकी सहायता कर सकते है शीघ्रता से अपना कार्य करते है।
भरणी अर्थात रिक्त स्थान को भरना इनके जीवन में कही न कही ऐसे मौके अवश्य आते है जिसमे इनको कुछ भरना हो अर्थात जिम्मेदारी।
कृतिका किसी भी पत्थर को काट कर कृति का रूप देना ,
रोहिणी विजय सुंदरता प्रेम
मृगशीर्ष अर्थात मृग के शीर्ष समान जिसकी विशेषता है जिज्ञासु , सचेत
पुष्य पोषण प्रदान करना।
ज्येष्ठा छोटे होते हुवे भी बड़े की भूमिका अदा करना,
मघा अर्थात शक्तिशाली सामर्थ्यवान इसका चिन्ह सिंहासन है देवता पितृ।
आषाढ़ का अर्थ है अपराजेय एवं पूर्व का अर्थ पहले आने वाला एवं उतरा का बाद में आने वाला अर्थात ऐसे व्यक्ति अपनी पराजय नहीं मानते एवं अपनी जीत जब तक न मिले अपने कार्य में संलग्न रहते है.
स्वाति अर्थात स्वतंत्र स्व आचरण करने वाला अर्थात आत्म निर्भरता।
अनुराधा का अर्थ है राधा जी जैसा अर्थात सौभाग्य , सुख ,मित्रता,समर्पण।
अश्लेषा कुंडली आलिंगन सर्प अर्थात ये नक्षत्र विष से भरा।
शतभिषा अर्थात सौ भीष अर्थात चिकित्सक ,
आद्रा अर्थात नमी होना गीला ,
चित्रा अर्थात चित्र की सुंदरता ,
मूल अर्थात जड़ रहस्मयी होना।
श्रवण अर्थात सुन ने वाला यदि आपके पास कोई श्रवण नक्षत्र वाला जातक है तो भाग्यशाली है आपकी हर बात सुनेंगे।
धनिष्ठा का अर्थ है सबसे धनवान धनि नक्षत्रो में से एक
पुनर्वसु अर्थात पून:कार्य की आशा
हस्त अर्थात हाथ अपने हस्त से करने वाला कोई ज्ञान
पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र वसंत ऋतू पर आधारित है जो आकर्षक है एवं देवता है भागा जो भोग को दर्शाते है एवं आराम को दर्शाते है वही उतरा फाल्गुनी आराम के समय भी किसी न किसी गतिविधि में व्यस्त रहने को दर्शाता है।
पूर्व भाद्रपद अर्थात पूर्व में शुभ कदमो से आने वाला
उतरा भाद्रपद अर्थात बाद में शुभ कदमो से आने वाला
रेवती अर्थात धन , सफल
अभिजीत अर्थात विजयी
अर्थात नक्षत्र के नाम एवं उनके देवता के अनुसार नक्षत्र के फल मिलते है , एवं फलित में सर्वोपरि है उक्त नक्षत्र का स्वामी ग्रह।
जैसे की नक्षत्र कोई भी हो यदि विवाह का प्रश्न है तो विवाह तभी सम्भव है जब उक्त नक्षत्र स्वामी विवाह दायक भाव से जुड़ा हो नक्षत्र कोई भी हो सकता है।
विवाह , संतान , कर्मक्षेत्र ये सभी विषय नक्षत्र के स्वामी ग्रह एवं उनके कुंडली स्थित योग पर ही निर्भर है।
मानले शतभिषा नक्षत्र का व्यक्ति है अर्थात उसमे १०० चिकित्सक अथवा सौ दवाएं उसके पास है किन्तु आवश्यक नहीं वो चिकित्सक होगा। किन्तु ग्रह संयोजन अनुसार वो जिस भी क्षेत्र में जायेगा स्वाभाव के अनुसार कार्य करेगा यदि वो एक शिक्षक है तो उक्त शिक्षक के पास हर मर्ज की दवा होगी। यदि यही शिक्षक का पुष्य नक्षत्र तो पोषण करने वाला , भरनी तो रिक्त स्थान भरने वाला , मूल तो किसी भी बात की जड़ तक जाकर समझने वाला।
नक्षत्रो के चरण अनुसार ही ग्रहो की स्थिति वर्ग कुंडलियों में होती है। तो सर्वाधिक महत्व दशा स्वामी एवं उक्त स्वामी ग्रह की वर्ग कुंडली में स्थिति अनुसार ही जीवन में शुभ अशुभ फल होंगे। अर्थात नक्षत्र कोई भी हो जीवन की समस्त घटनाओ के लिए आवश्यक तत्व उनके स्वामी ग्रह एवं उनके साथ योग बनाने वाले ग्रह ही है।
दिनेश यादव
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